रवींद्रनाथ टैगोर का सम्पूर्ण जीवन परिचय

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Mindfresh News January 25, 2025 09:37 AMदेश

रवींद्रनाथ टैगोर का सम्पूर्ण जीवन परिचय

परिचय

 

रवींद्रनाथ टैगोर (1861-1941) एक महान कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और नोबेल पुरस्कार विजेता थे। उन्हें 'गुरुदेव' के नाम से भी जाना जाता है। वे एशिया के पहले व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। उनकी रचनाएँ भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान का हिस्सा हैं।

 

जीवन परिचय

प्रारंभिक जीवन

 

रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर ब्रह्म समाज के एक प्रसिद्ध नेता थे, और माता शारदा देवी एक धार्मिक महिला थीं।

 

वे बचपन से ही रचनात्मक प्रवृत्ति के थे। पारंपरिक शिक्षा में रुचि न होने के कारण उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और घर पर ही पढ़ाई की। बाद में वे कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए, लेकिन साहित्य में अधिक रुचि होने के कारण वापस लौट आए।

 

 

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साहित्यिक योगदान

 

रवींद्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार और दार्शनिक थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:

 

1. कविता संग्रह:

 

गीतांजलि (Gitanjali) – इस पुस्तक के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला।

 

सोनार तरी

 

मानसी

 

बालाका

 

 

2. उपन्यास:

 

गोरा

घरे-बाइरे

चोखेर बाली

नष्टनीड़

3. नाटक:

डाकघर

राजा

चित्रांगदा

4. संगीत:

 

टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की, जिन्हें "रवींद्र संगीत" कहा जाता है। उनका लिखा गीत "जन गण मन" भारत का राष्ट्रगान बना, और "अमार सोनार बांग्ला" बांग्लादेश का राष्ट्रगान बना।

शिक्षा और शांतिनिकेतन

रवींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांतिनिकेतन नामक विद्यालय की स्थापना की, जो बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय बना। यह शिक्षा और कला का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

 

नोबेल पुरस्कार और अंतरराष्ट्रीय पहचान

1913 में, रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी काव्य रचना "गीतांजलि" के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। वे नोबेल पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय व्यक्ति थे।

उन्होंने कई देशों की यात्रा की और महात्मा गांधी, आइंस्टीन, और अन्य महान हस्तियों से मुलाकात की।

अंतिम वर्ष और मृत्यु

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वे राजनीति और समाज सुधार में भी सक्रिय रहे। 7 अगस्त 1941 को, 80 वर्ष की आयु में, कोलकाता में उनका निधन हो गया।

निष्कर्ष

रवींद्रनाथ टैगोर केवल एक साहित्यकार नहीं, बल्कि एक दार्शनिक, कलाकार और समाज सुधारक भी थे। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। भारतीय संस्कृति और साहित्य में उनका योगदान अमूल्य है।

 

"जहाँ म

न भयमुक्त हो और आत्मा सम्मान से ऊँची उठ सके, उसी स्थान पर मेरा देश हो।" – रवींद्रनाथ टैगोर

 

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