जरासंध का वध: महाभारत का एक महत्वपूर्ण प्रसंग
महाभारत भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महाकाव्य है, जिसमें धर्म, राजनीति, युद्धनीति और मानव स्वभाव के विभिन्न पहलुओं का वर्णन मिलता है। इस महाकाव्य में कई वीर योद्धाओं और राजाओं का उल्लेख किया गया है, जिनमें से एक महत्वपूर्ण पात्र था मगध नरेश जरासंध। जरासंध एक महान योद्धा और शक्तिशाली राजा था, जिसे हराना अत्यंत कठिन था। अंततः श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ने मिलकर एक युक्ति से उसका वध किया। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि जरासंध कौन था, उसकी शक्ति क्या थी, और किस प्रकार उसका अंत हुआ।
जरासंध मगध का राजा था, जो वर्तमान बिहार के क्षेत्र में स्थित था। वह एक अत्यंत शक्तिशाली शासक था, जिसकी सेना अति विशाल और अजेय मानी जाती थी। उसकी राजधानी गिरिव्रज (वर्तमान राजगीर) थी, जो किलों और प्राकृतिक सुरक्षा से घिरी हुई थी।
जरासंध के जन्म की कथा भी बहुत रोचक है। वह बृहद्रथ का पुत्र था, जो मगध का एक शक्तिशाली राजा था। बृहद्रथ की दो पत्नियाँ थीं, लेकिन उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं था। उन्होंने महर्षि चंडकौशिक से संतान प्राप्ति के लिए आशीर्वाद मांगा। महर्षि ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि इसे अपनी पत्नी को खिलाएँ, जिससे उन्हें एक शक्तिशाली संतान प्राप्त होगी।
राजा ने फल को दोनों पत्नियों में बाँट दिया। इसके परिणामस्वरूप दोनों रानियों ने आधे-आधे शरीर वाले दो बच्चे जन्म दिए। यह विचित्र संतान देखकर राजा ने दोनों को जंगल में फेंक दिया। जंगल में एक राक्षसी जिसका नाम "जरा" था, उसने उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया। संयोग से, वे जीवित हो गए और एक संपूर्ण बालक बन गया। इस घटना के कारण उसका नाम जरासंध पड़ा – यानी "जरा द्वारा जोड़ा गया"।
जरासंध एक महान योद्धा था, लेकिन उसके स्वभाव में अत्यधिक क्रूरता थी। वह युद्ध कला में निपुण था और अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त कर चुका था। उसकी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा संपूर्ण आर्यावर्त पर शासन करना था।
जरासंध ने कई राजाओं को पराजित किया और उन्हें बंदी बना लिया। वह 86 राजाओं को बंदी बनाकर रखे हुए था और उनकी बलि चढ़ाकर महादेव को प्रसन्न करना चाहता था।
यदुवंशियों से उसकी गहरी शत्रुता थी। उसने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया, लेकिन हर बार श्रीकृष्ण ने उसे पराजित किया। यह देखकर कि जरासंध को सीधे युद्ध में हराना कठिन होगा, श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़कर द्वारका में एक नया नगर बसाया। इस कारण से जरासंध ने उन्हें रणछोड़ की उपाधि दी।
युधिष्ठिर जब राजसूय यज्ञ करना चाहते थे, तब श्रीकृष्ण ने बताया कि जब तक जरासंध जीवित है, तब तक इस यज्ञ को करना संभव नहीं है। क्योंकि वह किसी को भी सम्राट मानने के लिए तैयार नहीं था।
श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ने मिलकर जरासंध के वध की योजना बनाई।
श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ब्राह्मण के वेश में मगध की राजधानी गिरिव्रज पहुँचे। उन्होंने राजा जरासंध से भिक्षा माँगने के बजाय मल्लयुद्ध (कुश्ती) की चुनौती दी।
जरासंध ने अर्जुन को अनदेखा कर दिया क्योंकि वह उसे बल में कमजोर मानता था। श्रीकृष्ण को उसने पहले से ही शत्रु माना था, इसलिए उनसे युद्ध करना नहीं चाहा। अंत में, उसने भीम की चुनौती स्वीकार कर ली।
भीम और जरासंध के बीच युद्ध 13 दिनों तक चला। दोनों योद्धा अत्यंत शक्तिशाली थे और किसी भी तरह एक-दूसरे पर हावी नहीं हो पा रहे थे।
जरासंध को कोई भी शस्त्र नहीं मार सकता था, क्योंकि उसका शरीर एक विशेष शक्ति से बना था। जब भी उसे दो टुकड़ों में किया जाता, तो वे पुनः जुड़ जाते थे।
13वें दिन श्रीकृष्ण ने भीम को इशारे से संकेत दिया। उन्होंने एक तिनके को उठाकर उसे बीच से चीरकर दो विपरीत दिशाओं में फेंका। यह संकेत समझकर भीम ने जरासंध को बीच से पकड़कर दो टुकड़ों में विभाजित किया और उन्हें अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया। इस बार वे टुकड़े जुड़ नहीं सके, और जरासंध का अंत हो गया।
जरासंध के वध के बाद कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं:
जरासंध का वध केवल एक ऐतिहासिक कथा नहीं, बल्कि एक गहरी रणनीतिक सीख भी है। श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन की यह योजना महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक रही, जिसने आगे के युद्धों और घटनाओं को आकार दिया।
Writer by ,
Aman pandey
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