सुमित्रानंदन पंत (20 मई 1900 – 28 दिसंबर 1977) हिंदी साहित्य के प्रमुख छायावादी कवियों में से एक थे, जिन्हें 'प्रकृति के सुकुमार कवि' के रूप में भी जाना जाता है। उनका जन्म उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले के कौसानी गाँव में हुआ था। दुर्भाग्यवश, जन्म के कुछ ही घंटों बाद उनकी माता का निधन हो गया, और उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। बचपन में उनका नाम 'गुसाईं दत्त' था, जिसे उन्होंने बाद में बदलकर 'सुमित्रानंदन पंत' रख लिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
पंत जी की प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के वर्नाक्यूलर स्कूल में हुई, जहाँ उनके कविता पाठ से प्रभावित होकर स्कूल इंस्पेक्टर ने उन्हें उपहारस्वरूप एक पुस्तक भेंट की। ग्यारह वर्ष की आयु में, उन्हें आगे की शिक्षा के लिए अल्मोड़ा के गवर्नमेंट हाईस्कूल में भेजा गया। अल्मोड़ा की संस्कृति और समाज ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया, और यहीं उन्होंने अपना नाम 'गुसाईं दत्त' से बदलकर 'सुमित्रानंदन पंत' रख लिया। 1918 में, वे काशी के क्वींस कॉलेज में पढ़ने गए, और वहाँ से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। 1921 में, महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और घर पर ही हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी साहित्य का स्वाध्याय करने लगे।
साहित्यिक यात्रा:
सात वर्ष की आयु से ही पंत जी ने कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था। 1918 तक वे हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। उनकी प्रारंभिक कविताएँ 'वाणी' में संकलित हैं। 1926 में उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह 'पल्लव' प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनकी साहित्यिक यात्रा के तीन प्रमुख पड़ाव माने जाते हैं: प्रथम में वे छायावादी हैं, दूसरे में समाजवादी आदर्शों से प्रेरित प्रगतिवादी, और तीसरे में अरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवादी।
प्रमुख कृतियाँ:
पंत जी की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं: 'वीणा', 'उच्छवास', 'पल्लव', 'ग्रन्थि', 'गुंजन', 'ग्राम्या', 'युगांत', 'स्वर्णकिरण', 'स्वर्णधूलि', 'कला और बूढ़ा चाँद', 'लोकायतन', 'चिदंबरा', 'सत्यकाम', 'मुक्तियज्ञ', 'स्वच्छंद', 'तारापथ', 'पल्लविनी', 'मधुज्वाला', 'मानसी', 'युगपथ', 'युगवाणी', 'उत्तरा', 'रजतशिखर', 'शिल्पी', 'सौवर्ण', 'अतिमा', 'अवगुंठित'। उनकी रचनाओं में प्रकृति का सजीव चित्रण, मानवीय संवेदनाएँ, और दार्शनिक चिंतन प्रमुखता से दिखाई देते हैं।
सम्मान और पुरस्कार:
सुमित्रानंदन पंत को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें 1960 में 'कला और बूढ़ा चाँद' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1961 में पद्मभूषण, 1968 में 'चिदंबरा' के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार शामिल हैं।
व्यक्तिगत जीवन और दर्शन:
पंत जी अविवाहित रहे और उनके अंतःस्थल में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौंदर्यपरक भावना रही। उनकी विचारधारा महात्मा गांधी, कार्ल मार्क्स, और श्री अरविंदो से प्रभावित हुई, जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। वे जीवनपर्यंत रचनारत रहे और 28 दिसंबर 1977 को उनका निधन हो गया।
स्मारक और विरासत:
पंत जी के सम्मान में कौसानी स्थित उनके पुराने घर को 'सुमित्रानंदन पंत वीथिका' के रूप में संग्रहालय में परिवर्तित किया गया है, जहाँ उनकी व्यक्तिगत वस्तुएँ, पांडुलिपियाँ, छायाचित्र, पत्र, और पुरस्कार प्रदर्शित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, इलाहाबाद में स्थित हाथी पार्क का नाम बदलकर 'सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान' रखा गया है।
सुमित्रानंदन पंत की कविताओं में प्रकृति के सौंदर्य, मानवीय संवेदनाओं, और दार्शनिक चिंतन का समावेश है, जो उन्हें हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है।