एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में ऐलान किया, "हम अपने राज्य के चार सबसे बड़े मूर्खों को ढूंढना चाहते हैं। जो इन मूर्खों को लाएगा, उसे इनाम मिलेगा।"
बीरबल को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। वह मूर्खों को ढूंढने निकल पड़ा।
बीरबल को पहला मूर्ख एक आदमी मिला, जो अपने सिर पर घास का बड़ा गट्ठर लिए जा रहा था।
बीरबल ने पूछा, "तुम इसे कहां ले जा रहे हो?"
आदमी ने कहा, "यह घोड़े के लिए है।"
बीरबल ने कहा, "तो इसे घोड़े पर क्यों नहीं रखते?"
आदमी ने जवाब दिया, "अगर घास घोड़े पर रख दी, तो वह थक जाएगा।"
यह सुनकर बीरबल ने उसे पहला मूर्ख कहा।
दूसरा मूर्ख एक आदमी था, जो कुएं में पानी डाल रहा था।
बीरबल ने पूछा, "तुम यह क्या कर रहे हो?"
आदमी ने कहा, "मैं कुएं को भर रहा हूं, क्योंकि यह खाली हो गया है।"
बीरबल ने कहा, "तुम्हें नहीं लगता यह बेकार का काम है?"
आदमी बोला, "राजा का हुक्म है, मैं इसे पूरा कर रहा हूं।"
बीरबल ने उसे दूसरा मूर्ख कहा।
तीसरा मूर्ख एक ऐसा आदमी था, जो रोज अपनी दाढ़ी कटवा रहा था।
बीरबल ने पूछा, "तुम रोज दाढ़ी क्यों कटवाते हो?"
आदमी ने कहा, "अगर दाढ़ी बड़ी होगी, तो लोग मुझ पर हंसेंगे। इसलिए इसे छोटा रखता हूं।"
यह सुनकर बीरबल ने उसे तीसरा मूर्ख कहा।
अब चौथे मूर्ख की बारी थी।
बीरबल ने सोचा, "मैं खुद मूर्ख हूं, जो इन मूर्खों को ढूंढने में समय बर्बाद कर रहा हूं।"
वह अकबर के पास लौट आया और बोला, "जहांपनाह, चौथा मूर्ख मैं हूं।"
अकबर हंस पड़े और बोले, "तुमने फिर से अपनी चतुराई से सबको हंसा दिया।"
यह कहानी सिखाती है कि हमें अपने समय और काम की कीमत समझनी चाहिए।
Writer by,
Aman Pandey