प्रेमानन्द जी महराज, वृन्दावन के प्रसिद्ध संत हैं, जिनका जीवन साधना और भक्ति का आदर्श है। वे न केवल अपनी उपदेशों से भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि उनकी सादगी और तपस्या भी लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। महराज जी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि भौतिकता से दूर रहकर भी एक संत समाज सेवा और भक्ति में उत्कृष्ट कार्य कर सकता है। उनका जीवन भक्ति और साधना से जुड़ा हुआ है, लेकिन उनके बारे में कुछ बातें ऐसी हैं, जो देखने में थोड़ी चौंकाने वाली हो सकती हैं।
प्रेमानन्द जी महराज का आश्रम वृन्दावन में है, जहां लाखों भक्त आते हैं। वे प्रातः समय में अपने आश्रम पैदल जाते हैं, ताकि वे अपने भक्तों के साथ सादगी से रह सकें। उनके बारे में कहा जाता है कि वे किसी भव्य संपत्ति के मालिक नहीं हैं और ना ही उनके पास कोई बैंक बैलेंस है। इसके बावजूद, एक बात जो लोगों को चौंकाती है, वह यह है कि उनके पास एक बेहद महंगी ऑडी कार है, जिसकी कीमत लगभग 60-80 लाख रुपये मानी जाती है। यह कार महराज जी की नहीं, बल्कि उनके कार्यसेवक की है।
सूत्रों के अनुसार, यह कार महराज जी के कार्यसेवक ने खरीदी है, और वह इसे महराज जी के यात्रा करने के लिए उपयोग करते हैं। यह कार उनके जीवन के उद्देश्य को पूरा करने में सहायक होती है। अक्सर वे पैदल ही अपने आश्रम जाते हैं और अपने भक्तों के साथ साधारण जीवन जीते हैं। किन्तु कभी कभी तबियत के वजह वपस इस कार का उपयोग करते हैं। महराज जी भौतिक वस्तुओं के बारे में कोई विशेष लगाव नहीं रखते, लेकिन अगर उनकी सेवा और यात्रा के लिए कोई सुविधा हो, तो वे उसका सही तरीके से उपयोग करते हैं।
यह गाड़ी महराज जी के जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को साफ करती है। वे भौतिक सुख-साधनों का उपयोग समाज सेवा और यात्रा के लिए करते हैं, न कि व्यक्तिगत आराम के लिए। क्योंकि हज़ारो के संख्या मे लोग इनका रात से ही लाइन लगा कर इंतजार करते हैं। इसलिए वो आश्रम पैदल जाते हैं ताकि सबसे भेट हो सके तथा तबियत को संज्ञान मे रखते हुए आवश्यकता अनुसार वापस गाड़ी से जाते हैं । वे संत होने का मतलब केवल भौतिक वस्तुओं से दूर रहना नहीं मानते, बल्कि उनका मानना है कि किसी वस्तु का उपयोग तभी किया जाए जब उसका उद्देश्य समाज के भले के लिए हो।