महात्माजी की बिल्ली
यह कहानी महात्माजी और उनकी बिल्ली की है, जो हमें सिखाती है कि किसी भी परंपरा को बिना समझे नहीं अपनाना चाहिए। आइए इसे सामान्य और आसान भाषा में समझते हैं।
किसी गांव में एक महात्माजी रहते थे, जो हर दिन पूजा और ध्यान करते थे। उनके पास एक छोटी प्यारी बिल्ली थी, जो हमेशा उनके साथ रहती थी।
महात्माजी रोज़ पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करते थे। बिल्ली भी वहां बैठती, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, वह शरारत करने लगी। कभी वह दीए को गिरा देती, तो कभी महात्माजी के कपड़ों से खेलती। इससे महात्माजी का ध्यान बार-बार भंग होने लगा।
महात्माजी ने सोचा कि अगर बिल्ली को बांध दिया जाए, तो वह शांति से ध्यान कर सकेंगे। उन्होंने रस्सी से बिल्ली को एक खंभे से बांध दिया और फिर ध्यान करने लगे। अब उनका ध्यान बिना किसी रुकावट के होने लगा। यह उनकी रोज़ की आदत बन गई।
महात्माजी के शिष्य रोज़ देखते थे कि गुरुजी ध्यान से पहले बिल्ली को बांधते हैं। उन्होंने सोचा कि यह ध्यान करने का एक ज़रूरी नियम है।
महात्माजी के गुजरने के बाद भी शिष्यों ने यह परंपरा जारी रखी। उन्होंने सोचा कि बिना बिल्ली को बांधे ध्यान करना गलत होगा। धीरे-धीरे यह एक परंपरा बन गई।
कुछ समय बाद, लोग यह मानने लगे कि ध्यान और पूजा तभी पूरी होती है, जब पहले बिल्ली को बांधा जाए। यहां तक कि अगर आश्रम में बिल्ली नहीं होती, तो वे बाहर से एक बिल्ली लाकर उसे रस्सी से बांधते थे। लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि इस परंपरा की असली वजह क्या है।
एक दिन एक युवक आश्रम आया। उसने देखा कि हर दिन बिल्ली को बांधा जा रहा है। उसने पूछा, "यह क्यों करते हैं?"
आश्रम के लोग बोले, "यह हमारी परंपरा है। ध्यान और पूजा तभी सफल होती है, जब पहले बिल्ली को बांधा जाए।"
युवक को यह बात अजीब लगी। उसने पुराने दस्तावेज और कहानियां पढ़ीं। उसे पता चला कि महात्माजी ने सिर्फ इसलिए बिल्ली को बांधा था ताकि वह ध्यान में शांति से बैठ सकें। यह कोई पूजा का नियम नहीं था।
युवक ने आश्रम के सभी लोगों को यह सच्चाई बताई। उसने समझाया कि बिल्ली को बांधने का असली कारण सिर्फ यह था कि वह ध्यान में रुकावट न डाले। यह कोई धार्मिक परंपरा नहीं थी।
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी परंपरा को अपनाने से पहले उसका कारण समझना बहुत ज़रूरी है। बिना सोचे-समझे परंपराओं का पालन करने से उनका असली मतलब खो जाता है।
महात्माजी की बिल्ली की यह कहानी हमें सोचने और समझने की अहमियत बताती है।