मनुष्य की वैज्ञानिक प्रगति ने हमें अंतरिक्ष तक पहुँचने की क्षमता दी है। हमने चंद्रमा पर कदम रखा, मंगल पर मिशन भेजे, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्ष स्टेशन (Space Station) बनाए। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतने विशालकाय अंतरिक्ष स्टेशन को अंतरिक्ष में कैसे पहुँचाया जाता है? यह प्रक्रिया आसान नहीं होती। एक पूरा अंतरिक्ष स्टेशन एक साथ लॉन्च नहीं किया जा सकता, बल्कि इसे टुकड़ों में अंतरिक्ष में भेजा जाता है और फिर वहीं जोड़कर एक विशाल संरचना बनाई जाती है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि यह प्रक्रिया कैसे काम करती है।
अंतरिक्ष स्टेशन एक मानव निर्मित संरचना है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में स्थित होती है। यह एक विशाल लैब की तरह होता है, जहाँ वैज्ञानिक शोध, अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण और भविष्य के गहरे अंतरिक्ष अभियानों की तैयारी की जाती है।
प्रमुख अंतरिक्ष स्टेशन:
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) – यह दुनिया का सबसे बड़ा अंतरिक्ष स्टेशन है, जिसे NASA, Roscosmos, JAXA, ESA और CSA जैसी कई अंतरिक्ष एजेंसियों ने मिलकर बनाया है।
एक संपूर्ण अंतरिक्ष स्टेशन को एक ही बार में लॉन्च करना संभव नहीं होता, क्योंकि:
यह बहुत बड़ा और भारी होता है।
इतने बड़े आकार को एक ही रॉकेट में ले जाना तकनीकी रूप से असंभव है।
इसे अंतरिक्ष में जोड़ने और बनाए रखने के लिए निरंतर सुधार और रखरखाव की जरूरत होती है।
इसलिए, इसे छोटे-छोटे मॉड्यूल्स में पृथ्वी से लॉन्च किया जाता है।
प्रक्रिया:
डिजाइन और निर्माण – पहले वैज्ञानिक और इंजीनियर अंतरिक्ष स्टेशन के विभिन्न मॉड्यूल डिज़ाइन और निर्मित करते हैं।
टेस्टिंग – मॉड्यूल्स को पृथ्वी पर टेस्ट किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे स्पेस में काम करेंगे।
लॉन्च – इन्हें अलग-अलग रॉकेट्स से अंतरिक्ष में भेजा जाता है।
1. रॉकेट्स (Rockets)
रॉकेट्स का उपयोग अंतरिक्ष मॉड्यूल्स को पृथ्वी की कक्षा तक ले जाने के लिए किया जाता है। प्रमुख रॉकेट्स हैं:
सैटर्न V – अपोलो मिशन के लिए इस्तेमाल किया गया।
स्पेस शटल – नासा द्वारा ISS के मॉड्यूल्स को ले जाने के लिए इस्तेमाल किया गया।
फाल्कन 9 और फाल्कन हेवी – स्पेसएक्स द्वारा विकसित रॉकेट्स।
2. डॉकिंग सिस्टम (Docking System)
जब मॉड्यूल्स अंतरिक्ष में पहुंचते हैं, तो उन्हें एक-दूसरे से जोड़ने के लिए डॉकिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। इसमें रोबोटिक आर्म्स और सटीक नेविगेशन सिस्टम की मदद से यह प्रक्रिया की जाती है।
ISS को 1998 से 2011 तक विभिन्न देशों के सहयोग से अंतरिक्ष में जोड़ा गया। इसे बनाने के लिए कुल 42 से अधिक लॉन्च किए गए।
Zarya (1998) – पहला मॉड्यूल जिसे रूसी Proton रॉकेट से भेजा गया।
Unity (1998) – पहला अमेरिकी मॉड्यूल, जिसे स्पेस शटल Endeavour ने जोड़ा।
Destiny (2001) – अमेरिका का वैज्ञानिक अनुसंधान प्रयोगशाला मॉड्यूल।
Columbus (2008) – यूरोप का वैज्ञानिक मॉड्यूल।
Kibo (2008) – जापान का वैज्ञानिक मॉड्यूल।
चीन ने 2021 में अपना स्वयं का स्पेस स्टेशन तियांगोंग लॉन्च किया। इसके प्रमुख मॉड्यूल्स हैं:
Tianhe (मुख्य मॉड्यूल)
Wentian और Mengtian (अन्य मॉड्यूल्स)
इसका निर्माण भी अंतरिक्ष में मॉड्यूल्स को एक-एक कर भेजकर किया गया।
ISS लगभग 7.66 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
हर 90 मिनट में ISS पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर लगाता है।
एक दिन में ISS से 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखे जा सकते हैं।
इसमें इंटरनेट और संचार सुविधाएँ भी उपलब्ध होती हैं।
इस तरह, अंतरिक्ष में इंसानों ने अपने हाथों से एक पूरा घर बना दिया है—वो भी शून्य गुरुत्वाकर्षण में!
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