परिवार में अश्लील विज्ञापनों की बढ़ती समस्या: एक चिंतनीय सामाजिक संकट
आज का युग सूचना और मनोरंजन का युग है। टेलीविजन, इंटरनेट और मोबाइल जैसे साधनों ने जानकारी को सुलभ बना दिया है। लेकिन इनके साथ अश्लील और अनावश्यक रूप से उत्तेजक विज्ञापनों का बढ़ता प्रसार एक गंभीर सामाजिक संकट बन गया है। यह न केवल पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित करता है, बल्कि बच्चों की मासूमियत और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालता है।
मीडिया में अश्लीलता का प्रसार:
वर्तमान समय में न्यूज़ चैनलों से लेकर मनोरंजन चैनलों तक, अधिकांश प्रसारणों में विज्ञापन के माध्यम से यौनिकता का स्पष्ट प्रदर्शन किया जा रहा है। कंडोम, अंडरवियर, परफ्यूम, और अन्य उत्पादों के विज्ञापनों में अतिरंजित और अश्लील दृश्य आम हो गए हैं। इससे पारिवारिक वातावरण में असहजता उत्पन्न होती है।
परिवार के सामने असहजता:
परिवार के साथ बैठकर टेलीविजन देखना अब पहले जैसा सहज अनुभव नहीं रहा। विज्ञापनों की प्रकृति इतनी अश्लील हो गई है कि दर्शकों को शर्मिंदगी महसूस होती है। इससे परिवारों में टेलीविजन देखने की स्वतंत्रता भी सीमित हो गई है।
बच्चों पर प्रभाव:
कम उम्र के बच्चों के सामने बार-बार यौनिकता से भरे विज्ञापन दिखाना उनके मानसिक विकास को प्रभावित करता है। वे समय से पहले विषयों से अवगत हो जाते हैं, जिससे उनकी सोच और व्यवहार में असामान्य परिवर्तन आ सकते हैं।
बाजारवाद और सामाजिक मूल्यों के बीच संघर्ष:
कंपनियाँ अब केवल लाभ के लिए विज्ञापनों में उत्तेजकता का उपयोग करती हैं। यह नीति सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है। बाजार की मांग और नैतिकता के बीच संतुलन आवश्यक है।
संवैधानिक अधिकार और मीडिया जिम्मेदारी:
भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार देता है। जब विज्ञापन इतने अश्लील हो जाएं कि व्यक्ति अपने परिवार के साथ सामान्य कार्यक्रम भी न देख पाए, तो यह उसके अधिकारों का हनन है।
कानूनी उपाय:
1. **ASCI (Advertising Standards Council of India):** अश्लील या भ्रामक विज्ञापनों की शिकायत की जा सकती है। वेबसाइट: [https://ascionline.in](https://ascionline.in)
2. **सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय:** मीडिया कंटेंट की निगरानी करता है।
3. **जनहित याचिका:** उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में PIL दायर की जा सकती है।
समाधान और सुझाव:
* प्राइम टाइम में सेंसर: बच्चों और परिवार के समय पर अश्लील विज्ञापन प्रतिबंधित किए जाएं।
* विज्ञापन रेटिंग: उम्र के अनुसार विज्ञापनों की श्रेणियाँ तय की जाएं।
* पैरेंटल कंट्रोल: टीवी और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर इसकी सुविधा का अधिक प्रयोग किया जाए।
* जागरूकता अभियान: समाज को इसके प्रति सचेत करने के लिए अभियान चलाए जाएं।
परिवार के साथ टेलीविजन देखना सामान्य और सुरक्षित अनुभव होना चाहिए। अश्लील और अनावश्यक विज्ञापन इस अनुभव को बाधित कर रहे हैं। यह केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक संकट है। सरकार, मीडिया और नागरिकों को मिलकर ऐसे विज्ञापनों पर नियंत्रण और वैकल्पिक, नैतिक कंटेंट को बढ़ावा देना होगा।
अब समय है कि हम सभी मिलकर अपनी संस्कृति और सामाजिक मूल्यों की रक्षा करें और अगली पीढ़ी को एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण दें।
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