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बद्रीनाथ धाम के कपाट खुले: चारधाम यात्रा 2025 का शुभारंभ

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Mindfresh News May 4, 2025 12:57 PMब्लॉग

भारत की धार्मिक परंपरा में चारधाम यात्रा का विशेष महत्त्व है। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ — ये चार तीर्थ स्थल हिंदू श्रद्धालुओं के लिए मोक्ष का द्वार माने जाते हैं। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इन स्थलों की यात्रा करते हैं। इस वर्ष, 4 मई 2025 को प्रातः 6 बजे वैदिक मंत्रोच्चार और विधिविधान के साथ भगवान बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले गए। इस शुभ अवसर पर हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे और पूरे क्षेत्र में भक्ति और उत्साह का वातावरण व्याप्त हो गया।

ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व

बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है। इसे शंकराचार्य द्वारा 8वीं सदी में पुनः स्थापित किया गया था। बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली ज़िले में स्थित है और यह अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने यहाँ नर और नारायण के रूप में तपस्या की थी। माता लक्ष्मी ने उन्हें ठंड से बचाने के लिए बद्री वृक्ष का रूप धारण किया, जिससे इस स्थान का नाम बद्रीनाथ पड़ा।

कपाट खुलने की परंपरा

हर वर्ष अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं और दीपावली के समय कपाट बंद किए जाते हैं। इस वर्ष कपाट खुलने की तिथि 4 मई 2025 निर्धारित की गई थी। कपाट खोलने की प्रक्रिया पूरी तरह वैदिक परंपरा और स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार होती है। इस बार मंदिर को लगभग 40 क्विंटल फूलों से सजाया गया था और हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा की गई, जिससे श्रद्धालुओं में विशेष उल्लास देखा गया।

चारधाम यात्रा 2025 की शुरुआत

चारधाम यात्रा की शुरुआत 30 अप्रैल 2025 को गंगोत्री और यमुनोत्री धामों के कपाट खुलने के साथ हुई थी। 2 मई को केदारनाथ और अंत में 4 मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ यात्रा पूर्ण रूप से शुरू हो गई।

प्रशासनिक व्यवस्था और सुविधाएँ

उत्तराखंड सरकार ने इस बार यात्रा को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए विशेष प्रयास किए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद बद्रीनाथ धाम पहुंचकर भगवान के दर्शन किए और व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया। बद्रीनाथ मास्टर प्लान के अंतर्गत कई विकास कार्य किए जा रहे हैं, जैसे—सड़क चौड़ीकरण, पर्यावरण संरक्षण, चिकित्सा सुविधा, आपातकालीन हेलीकॉप्टर सेवा आदि।

मंदिर की वास्तुकला

बद्रीनाथ मंदिर 50 फीट ऊँचा है और इसका निर्माण पारंपरिक उत्तर भारतीय नागरा शैली में हुआ है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान विष्णु की ध्यान मुद्रा में शालिग्राम शिला से बनी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के अंदर गर्भगृह, सभा मंडप और दर्शन मंडप हैं।

पौराणिक कथाएँ

नर-नारायण की तपस्या: कहा जाता है कि भगवान विष्णु नर-नारायण रूप में यहाँ तपस्या में लीन थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी ने बद्री वृक्ष का रूप लिया।

उर्वशी और तपस्वी: एक कथा के अनुसार, अप्सरा उर्वशी ने तपस्वियों की तपस्या भंग करने का प्रयास किया था, लेकिन वे विचलित नहीं हुए और इस स्थान की पवित्रता और भी बढ़ गई।

आदि शंकराचार्य की पुनर्स्थापना: 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने यहाँ भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा को अलकनंदा से निकालकर वर्तमान मंदिर में स्थापित किया था।

यात्रा मार्ग

बद्रीनाथ जाने के लिए श्रद्धालु हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून से यात्रा शुरू करते हैं। सड़क मार्ग से जोशीमठ होते हुए बद्रीनाथ पहुँचा जा सकता है। हेली सेवा भी उपलब्ध है जो विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों और आपातकालीन परिस्थितियों में अत्यंत उपयोगी है।

मौसम और यात्रा अवधि

मई से अक्टूबर तक का समय यात्रा के लिए अनुकूल होता है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर क्षेत्र में पहुँचना कठिन हो जाता है, इसलिए कपाट दिवाली के बाद बंद कर दिए जाते हैं।

श्रद्धालुओं का अनुभव

श्रद्धालु बद्रीनाथ की यात्रा को आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का साधन मानते हैं। यहाँ आकर हिमालय की गोद में बैठा यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।

समापन

बद्रीनाथ धाम की यात्रा केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि जीवन के एक आध्यात्मिक अनुभव का प्रतीक है। यहाँ की यात्रा आत्म-चिंतन, श्रद्धा और समर्पण की भावना को और गहरा करती है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इस पावन भूमि पर आकर ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को प्रकट करते हैं। चारधाम यात्रा 2025 के साथ एक बार फिर से भारत की आस्था, संस्कृति और परंपरा का यह भव्य उत्सव शुरू हो चुका है।

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