अंतरिक्ष में 9 महीने बिताने के बाद पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों की चुनौतियाँ
क्या आपने कभी सोचा है कि कोई अंतरिक्ष में 9 महीने बिताने के बाद जब पृथ्वी पर लौटता है तो उसे किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?
सुनीता विलियम्स, जो कई महीनों तक अंतरिक्ष में रहीं, जब वापस लौटीं तो उन्हें कुछ हैरान करने वाली समस्याओं से जूझना पड़ा। स्पेस में जीरो ग्रैविटी होती है, जिससे शरीर को वजन महसूस नहीं होता। लेकिन जब वो वापस लौटीं, तो धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति ने उनके शरीर पर अचानक दबाव डाला। इससे उन्हें चलने में दिक्कत होने लगी। स्पेस में महीनों तक रहने से उनकी हड्डियाँ और मांसपेशियाँ कमजोर हो गईं। वैज्ञानिक इसे 'मसल एट्रॉफी' और 'बोन लॉस' कहते हैं। इसलिए उन्हें फिजियोथेरेपी की जरूरत पड़ी।
धरती पर लौटने के बाद उन्हें चक्कर आने लगे क्योंकि उनका वेस्टिबुलर सिस्टम, जो हमारे बैलेंस को कंट्रोल करता है, स्पेस में कमजोर हो चुका था।
अंतरिक्ष में शरीर का ब्लड फ्लो अलग तरीके से काम करता है। जब वह वापस आईं, तो उन्हें ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव और हार्ट रेट में बदलाव जैसी समस्याएँ हुईं।
इतने महीनों तक स्पेस में रहने के बाद वापस आकर मानसिक रूप से भी उन्हें काफी एडजस्ट करना पड़ा। स्पेस का शांत माहौल और पृथ्वी की हलचल—दोनों के बीच तालमेल बिठाना आसान नहीं था।
लेकिन वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की मदद से, और अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से, सुनीता ने इन सभी चुनौतियों को पार किया और एक बार फिर इंस्पिरेशन बन गईं!
तो अगली बार जब आप किसी अंतरिक्ष यात्री के पृथ्वी पर लौटने की खबर सुनें, तो याद रखें—यह सिर्फ एक सफर का अंत नहीं, बल्कि एक नई चुनौती की शुरुआत होती है!
शून्य गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव
अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण बहुत कम होता है, जिससे शरीर को अपने वजन का अहसास नहीं होता। वहां लंबे समय तक रहने से शरीर में मांसपेशियों और हड्डियों की ताकत कम होने लगती है। वैज्ञानिक इसे मसल एट्रॉफी और बोन लॉस कहते हैं। इसका मतलब है कि मांसपेशियाँ सिकुड़ जाती हैं और हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं।
पृथ्वी पर लौटने पर शरीर पर प्रभाव
जब अंतरिक्ष यात्री वापस पृथ्वी पर आते हैं, तो पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति उनके शरीर पर अचानक प्रभाव डालती है। मांसपेशियाँ कमजोर होने के कारण उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत होती है। उनके शरीर को गुरुत्वाकर्षण के अनुसार खुद को फिर से ढालने में समय लगता है।
संतुलन प्रणाली में बदलाव
अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से वेस्टिबुलर सिस्टम, जो शरीर के संतुलन को नियंत्रित करता है, कमजोर हो जाता है। इसलिए वापस आने पर कई यात्रियों को चक्कर आने लगते हैं और संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इसे ठीक करने के लिए उन्हें विशेष व्यायाम और फिजियोथेरेपी की जरूरत पड़ती है।
रक्त परिसंचरण और हृदय संबंधी समस्याएं
अंतरिक्ष में रक्त प्रवाह पृथ्वी से अलग तरीके से होता है। वहां खून शरीर के ऊपरी भागों में अधिक होता है। पृथ्वी पर लौटने पर रक्तचाप में उतार-चढ़ाव और हृदय की धड़कन में बदलाव जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं, जिन्हें नियंत्रित करना होता है।
मानसिक समायोजन की चुनौतियाँ
स्पेस का शांत और नियंत्रित वातावरण, और पृथ्वी की हलचल और शोर के बीच अंतरिक्ष यात्री को मानसिक रूप से तालमेल बैठाना कठिन होता है। लंबे समय तक पृथ्वी से दूर रहने के बाद उनका मानसिक और भावनात्मक समायोजन भी एक बड़ी चुनौती होती है।
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